आजमगढ़ : तहसील मार्टीनगंज के बर्रा गांव में बच्चों के शिक्षा की डोर कोरोना काल में नहीं पड़ने पाई कमजोर। सरकार ने महामारी से आजादी के लिए स्कूलों को बंद कराया तो भी घरों में बदस्तूर लगे क्लास। टीचर प्रतिमा व गांव की पढ़ी-लिखी बेटियां उस दौरान पकड़े रहीं शिक्षा की डोर। सरकार ने आनलाइन शिक्षा का विकल्प जरूर दिया था, लेकिन पढ़ाई में गरीबी एवं कमजोर इंटरनेट नेटवर्क से रोड़ा अटकने लगा था। मुश्किल में बच्चों का भविष्य पड़ते देख शिक्षिका प्रतिमा ने रणनीति बनाई तो बच्चों की पढ़ाई बदस्तूर रही।
गांव की बेटियां थामी शिक्षा की डोर:
कोरोना काल में सबकुछ लाक हुआ तो शिक्षित बेटियों का समय बीतना मुश्किल होने लगा था। इधर गरीबों के बच्चे स्कूल बंद होने से घरों में सिमटकर रह गए। चूंकि, शारीरिक दूरी का पालन जरूरी था, लिहाजा प्रतिमा ने गांव की शिक्षित लड़कियों से बात की। उन्हें समझाया तो रिया मिश्रा, सलोनी राजभर, पिकी यादव इत्यादि घरों में क्लास देने लगीं। प्रतिमा भी गांव के बड़े अहाते में एक-एक दर्जन बच्चों को नियमित पढ़ाती थीं।
सहायक शिक्षकों में जगी कर्तव्य परायणता:
प्रतिमा की पहल ने बर्रा द्वितीय प्राथमिक विद्यालय के सहायक अध्यापक प्रदीप श्रीवास्तव, शिक्षा मित्र विपिन सिंह व गांव के युवक छोटू में भी कर्तव्यबोध हुआ। चूंकि, बच्चों की संख्या ज्यादा थी, इसलिए इन लोगों ने भी गांव में खुले स्थान पर क्लास लगाई तो बच्चों की पढ़ाई पीछे नहीं हो पाई।
वाट्सएप से बच्चों तक पहुंचाए वीडियो:
बार्डर के गांव में कमजोर नेटवर्क के कारण आनलाइन पढ़ाई मुश्किल थी। मोबाइल की कमी भी उभरी थी। ऐसे में बच्चों तक वाट्सएप से वीडियो पहुंचाए गए, जो किसी समय जरूर पहुंच जाते थे। इससे बच्चों को शिक्षा की सामग्री मिल जाती थी।
''स्कूल में एक समय बच्चों की संख्या नगण्य होती थी। मैं हैलो बूथ व बुलावा टोली अस्तित्व में लाई। हैलो बूथ से अभिभावकों से बात करती और बच्चों को स्कूल भेजने को कहती थी। बुलावा टोली में शामिल आधा दर्जन बच्चों के जिम्मे छात्रों को घर से बुलाने का जिम्मा था। ऐसे में कोरोना में स्कूल बंद हुआ तो मुझसे रहा नहीं गया और मेरे प्रयास को सबका सहारा मिला और बच्चों की पढ़ाई बदस्तूर रही।
-प्रतिमा उपाध्याय, अध्यापिका।