इस बार भी टैबलेट का स्कूलों तक पहुंचना मुश्किल,जानिए क्यों दिए जाएंगे टैबलेट

 शिक्षकों व बच्चों की हाजिरी के लिए अनिवार्य टैबलेटों का इस शैक्षिक सत्र में भी स्कूल पहुंचना मुश्किल नजर आ रहा है। लगातार दो साल से इन टैबलेटों की खरीद नहीं हो पा रही है। लखनऊ में हुए परीक्षण में तीनों कंपनियां फेल हो गई हैं, लिहाजा अब नए सिरे से खरीद की जाएगी। ये टैबलेट 1,59,043 स्कूलों, 880 खण्ड शिक्षा अधिकारियों और 4400 अकादमिक रिसोर्स पर्सन (एआरपी) को दिए जाने हैं। इस पूरी योजना पर सरकार 150 करोड़ रुपये खर्च करेगी। 

वर्ष 2019-20 से टैबलेट खरीद नहीं हो पाई। कोरोना काल में टेबलेट के लिए टेंडर आमन्त्रित किए गए थे लेकिन उस समय कंपनियों ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली। दोबारा टेंडर निकाले गए तो तीन कंपनियां तकनीकी बिड में सफल हुई।



प्रायोगिक तौर पर लखनऊ के चुनिन्दा विद्यालयों में 31 दिसम्बर से 15 दिनों तक टेबलेट का परीक्षण किया गया लेकिन ये परीक्षण फेल हो गया। इसमें कई तरह की दिक्कतें आई।

वर्ष 2019-20 में ऑपरेशन कायाकल्प और मिशन प्रेरणा के डाटा की अपडेट करने, शिक्षकों की - उपस्थिति पर शिकंजा कसने और अन्य डिजिटल कामों को करने के लिए टैबलेट देने का निर्णय लिया था। प्रेरणा पोर्टल पर सभी सूचनाएं उपलब्ध कराने एवं सेल्फी के माध्यम से शिक्षकों की हाजिरी की सुगबुगाहट हुई तो शिक्षकों ने कड़ा विरोध किया। शिक्षकों के विरोध के बाद विभाग ने बायोमीट्रिक हाजिरी लेने की योजना बनाई और सभी को टैबलेट देने का निर्णय लिया। इससे सुबह प्रार्थना सभा का फोटो भी मंगवाया जाएगा और एक सॉफ्टवेयर के जरिये हेड काउंट भी किया जाएगा ताकि निश्चित हो सके कि कितने बच्चे स्कूल आए।


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