निशुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत निजी स्कूल गरीब बच्चों का प्रवेश नहीं ले रहे हैं। बीएसए से लेकर शासन तक की फटकार और नोटिस का असर भी स्कूल संचालकों पर नहीं हो रहा है। निजी स्कूलों की हठधर्मिता के कारण सात हजार से अधिक बच्चों की पढ़ाई शुरू नहीं हो पा रही है।
नए सत्र 2021-22 के लिए आरटीई के तहत 12770 गरीब बच्चों का चयन तीन चरणों में प्राइवेट स्कूलों में प्रवेश के लिए किया गया था। लगभग आधा सत्र गुजर जाने के बाद भी अभी तक सिर्फ 5132 बच्चों का ही निजी स्कूलों में प्रवेश हुआ है। इन बच्चों के अभिभावक कभी स्कूल तो कभी बेसिक शिक्षा कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं।
निजी स्कूल प्रवेश लेने के लिए सीधा मना कर रहे हैं। कुछ विद्यालय तो ऐसे हैं जिनकी कई शाखाएं हैं। इन स्कूलों को दो-दो सौ बच्चे प्रवेश के लिए आवंटित किए हैं लेकिन एक भी बच्चे का प्रवेश नहीं लिया गया है। बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से प्रवेश नहीं लेने पर इन स्कूलों को एक के बाद एक कई नोटिस जारी किए गए लेकिन संचालक टस से मस नहीं हुए।
निजी स्कूलों की ओर से प्रवेश न लेने के पीछ बार-बार कारण बताया जाता है कि बीते तीन वर्षों से सरकार की ओर से अभी तक फीस प्रतिपूर्ति शुल्क नहीं दिया गया है। स्कूल प्रशासन का कहना है कि आखिर कब तक बिना फीस के बच्चों को पढ़ाएं।
अब कार्रवाई की बात कर रहा है प्रशासन
जिला विद्यालय निरीक्षक विजय प्रताप सिंह ने कहा कि प्रवेश नहीं लिए जाने की शिकायत पर विद्यालयों को नोटिस भेजे जा रहे हैं। अगर नहीं मानते तो कार्यवाही की जाएगी। कई स्कूलों में स्वयं बात कर चयनित बच्चों के प्रवेश कराए हैं लेकिन कुछ स्कूल बिल्कुल भी सुनने को तैयार नहीं हो रहे हैं। ऐसे 65 स्कूलों को चिन्हित कर इनकी बैठक जिलाधिकारी के साथ करायी गई। जिसमें सभी ने प्रवेश का आश्वासन दिया था लेकिन कुछ को छोड़कर किसी ने प्रवेश नहीं लिया।
आवंटन 200 बच्चों का प्रवेश सिर्फ दो को
सीएसएस स्कूलों की शाखाओं में 200 बच्चों का आवंटन हुआ लेकिन प्रवेश सिर्फ दो लोगों का ही लिया है। एलपीएस को 179 चयनित बच्चे आवंटित हुए हैं लेकिन यहां भी प्रवेश की संख्या नगण्य है। आईडी रस्तोगी स्कूल को दस, ब्राइट वे स्कूल को 10 बच्चे आंवटित हैं लेकिन प्रवेश शून्य है।