बच्चों को गलत इरादे से छूना भी पॉक्सो के तहत अपराध

 सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि बच्चों को गलत नीयत से छूना भी पॉक्सो कानून के तहत अपराध है। यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण कारक यौन मंशा है, बच्चों की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं। बंबई हाईकोर्ट ने एक विवादित फैसले में कहा था कि यदि आरोपी और पीड़िता के बीच त्वचा से त्वचा का सीधा संपर्क नहीं हुआ है, तो पॉक्सो कानून के तहत अपराध नहीं बनेगा।

अपराधी को बचने का रास्ता नहीं दे सकते : जस्टिस यूयू ललित, रवींद्र भट और बेला त्रिवेदी की तीन सदस्यीय पीठ ने बंबई हाईकोर्ट का आदेश निरस्त करते हुए कहा कि शरीर के निजी अंग को छूना या यौन इरादे से किया गया शारीरिक संपर्क का कोई भी कृत्य पॉक्सो की धारा-7 के तहत यौन उत्पीड़न ही होगा। किसी भी कानून का मकसद अपराधी को कानून के चंगुल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता।

अदालतें कानूनों में अस्पष्टता पैदा न करें:शीर्ष अदालत ने कहा,जब संसद ने इस मामले में स्पष्ट इरादा दिखाया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकतीं। किसी नियम को बनाने से वह नियम प्रभावी होना चाहिए, न कि नष्ट होना चाहिए। प्रावधान के उद्देश्य को नष्ट करने वाली उसकी कोई भी संकीर्ण व्याख्या स्वीकार्य नहीं हो सकती। कानून के मकसद को तब तक प्रभावी नहीं बनाया जा सकता, जब तक उसकी व्यापक व्याख्या न हो।

अटॉर्नी जनरल ने दूसरी बार दी याचिका : पीठ ने कहा कि यह दूसरा मौका है जब अटॉर्नी जनरल ने किसी हाईकोर्ट के आपराधिक मामले में सुनाए किसी फैसले के खिलाफ अपील की थी। 1985 में भी तत्कालीन अटॉर्नी जनरल ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। इसमें कोर्ट ने फांसी देने की तारीख, समय और स्थान के बारे में प्रचार कर सार्वजनिक फांसी देने को कहा था। तब अटॉर्नी जनरल ने इसे बर्बर कार्य बताया था।

केंद्र ने बताया था खतरनाक

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि बंबई उच्च न्यायालय का फैसला खतरनाक और अपमानजनक मिसाल स्थापित करेगा और इसे पलटने की जरूरत है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर 27 जनवरी को रोक लगा दी थी।

हाईकोर्ट ने क्या कहा...

नागपुर पीठ की न्यायाधीश पुष्पा गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा था कि त्वचा से त्वचा के सीधे संपर्क के बिना नाबालिग के निजी अंगों को छूना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन अपराध नहीं माना जा सकता। व्यक्ति ने कपड़े हटाए बिना बच्ची को पकड़ा, इसलिए इसे यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-354 के तहत एक महिला की गरिमा भंग करने का अपराध है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था।

भाई-बहन ही आमने सामने

इस मामले में न्यायमित्र के रूप में अपराधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए, जबकि उनकी बहन वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से पेश हुईं। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस बार एक भाई और एक बहन भी एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं।




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